मैं पैहम हार कर ये सोचता हूँवो क्या शय है जो हारी जा रही है ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैंशुक्रिया मश्वरत का चलते हैं क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने मेंजो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं फारेहा निगारिना, तुमने मुझको लिखा है“मेरे ख़त जला दीजे !मुझको फ़िक्र रहती है !आप उन्हें गँवा दीजे !आपका… Continue reading जौन एलिया साहब